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भगवान राम की प्रतिमा को गढ़ने वाले कलाकार की कहानी
भगवान राम की प्रतिमा को गढ़ने वाले कलाकार अरुण योगीराज ( Arun Yogiraj) की कहानी बेहद रोचक और अद्भुत है। राम मंदिर के लिए भगवान राम की प्रतिमा बनाने का जिम्मा अरुण योगीराज को सौंपा गया था, जिसे उन्होंने बहुत अच्छी तरह से निभाया , इस दौरान उन्होंने कई अद्भुत और आध्यात्मिक अनुभव किए।
जानिए कौन है Arun Yogiraj (अरुण योगीराज )
अरुण योगीराज मैसूर के एक प्रसिद्ध मूर्तिकार हैं, जो पांच पीढ़ियों की शिल्पकार परंपरा से आते हैं। माना जाता है कि उनका जन्म मैसूर के ही अग्रहारा क्षेत्र में हुआ था। एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ समय कॉर्पोरेट जगत में भी काम किया, लेकिन 2008 के आसपास उन्होंने अपनी पारिवारिक विरासत को आगे बढ़ाने का फैसला लिया और शिल्पकला को पूर्ण रूप से अपना लिया।
उनकी कलाकृतियां देशभर में प्रसिद्ध हैं, जिनमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 30 फीट ऊंची प्रतिमा, जो दिल्ली के इंडिया गेट पर स्थापित है, और हाल ही में अयोध्या के राम मंदिर में विराजमान रामलला की मूर्ति शामिल हैं। रामलला की मूर्ति के निर्माण के लिए आयोजित प्रतियोगिता में उनकी कृति को सर्वश्रेष्ठ चुना गया था, जो उनकी कलात्मक प्रतिभा का प्रमाण है।
अरुण योगीराज की मूर्तियों की खासियत उनकी बारीक नक्काशी और जीवंत भाव है। वह पारंपरिक शिल्प तकनीकों में निपुण हैं और साथ ही समकालीन शैली को भी अपनाते हैं। उनके काम को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि वह अपने पेशे के प्रति समर्पित हैं और मूर्तियों के माध्यम से कहानियों को बयां करने का हुनर रखते हैं।
पुरस्कार से भी सम्मानित
अरुण योगीराज भारत के सबसे प्रतिभाशाली युवा मूर्तिकारों में से एक हैं और भविष्य में उनसे और भी शानदार कृतियों की उम्मीद की जा सकती है। कई पुरुस्कारो से भी समान्नित किया गया है।
उनके द्वारा राम लला मूर्ति मंदिर चयनित होने के बाद , अरुण योगीराज ( Arun Yogiraj ) स्वयं को भाग्यवान समझ रहे हैं। प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शाामिल कर्नाटक के मैसूर जिले के अग्रहार के रहने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज ने कहा कि वह धरती पर सबसे भाग्यशाली व्यक्ति हैं। पूर्वजों और परिवार का आशीर्वाद है की राम लला बनाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
भगवान राम से मिली प्रेरणा – कैसे बनी भव्य प्रतिमा
अरुण योगीराज 300 साल पुराने कलाकार परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके परिवार ने कई पीढ़ियों से मंदिरों और देवस्थानों के लिए प्रतिमाएं बनाई हैं।
अरुण योगीराज को राम मंदिर के लिए 4.24 फीट ऊंची और 3 फीट चौड़ी भगवान राम की प्रतिमा बनाने का मौका मिला। इस दौरान उनके साथ कई आध्यात्मिक और रोचक घटनाएं हुईं, जैसे –
प्रेरणा कैसे मिली?
- अरुण योगीराज ने बताया कि प्रतिमा बनाते समय उन्हें कई जगह से प्रेरणा मिली।
- दीपावली के मौके पर बच्चों की तस्वीरें देखकर उन्हें बाल रूप की रचना करने में मदद मिली।
- रात को सोते समय भी उन्हें कैसे प्रतिमा बनानी है, इसके बारे में विचार आते रहते थे।
- अरुण योगीराज ने बताया कि प्रतिमा बनाने के दौरान लगा कि भगवान राम स्वयं ही मार्गदर्शन कर रहे हैं।
आध्यात्मिक अनुभव
- प्रतिमा बनाते समय अरुण योगीराज कई चमत्कारिक घटनाओं का अनुभव करते रहे।
- कई बार बंदर प्रतिमा को देखने संग्रहालय में प्रवेश करते थे।
- एक बार तो हनुमान जी की प्रतिमा ने रात को आवाज कर उन्हें जगाया था।
- ये घटनाएं अरुण योगीराज के लिए आध्यात्मिक अनुभव बन गईं।
सफलता का राज – मेहनत और समर्पण
अरुण योगीराज ने बताया कि प्रतिमा की सफलता का राज उनकी मेहनत और समर्पण था।
- उन्होंने 7 महीने तक लगातार काम किया और बच्चों के चेहरों की गहराई से study की।
- अपनी 6 साल की बेटी से भी प्रतिमा के बारे में फीडबैक लिया।
- उन्होंने कहा कि पत्थर को समझना और उसमें भाव उतारना बेहद कठिन काम है।
- लेकिन उनकी लगन, मेहनत और भगवान के प्रति समर्पण ने मुश्किल चुनौती को पार करने में मदद की।
रामलला की प्रतिमा बनाने की चुनौतियाँ
अरुण योगीराज ने बताया कि ५१ इंच ऊँची प्रतिमा बनाना बहुत बड़ी चुनौती थी। कुछ चुनौतियाँ इस प्रकार हैं:
- पत्थर को आकार देना मुश्किल होता है। छेनी लगने से भी नुकसान हो सकता है।
- प्रतिमा में सही भाव और मुद्रा लाना चुनौतीपूर्ण काम है।
- बच्चे के चेहरे की विशेषताएँ और नरमी को पकड़ना कठिन था।
- पत्थर में बालक राम के रूप को ढूँढना एक कला ही नहीं, साधना भी थी।
इन सभी चुनौतियों का सामना करते हुए अरुण योगीराज ने अपनी कला, कौशल और मेहनत से एक अद्भुत प्रतिमा की रचना की।
आखिर मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच ही क्यों हैं ?
रामलला की मूर्ति 5 साल के बालक राम के रूप की है जिसकी ऊंचाई 51 इंच है. इस मूर्ति की लंबाई 51 इंच इसलिए रखी गई ताकि हर रामनवमी के दिन दोपहर के वक्त सूर्य की किरणें रामलला के माथे पर पड़े. यानी हम कह सकते है कि हर रामनवमी के दिन रामलला के माथे पर सूरज का तेज होगा और जिन्हे भक्तगण दर्शन करके भक्ति से ओत -प्रोत पाएंगे।
रामलला को लेकर उत्साह
रामलला की प्रतिमा का चयन होने के बाद से ही लोगों में इसके प्रति बेहद उत्साह देखने को मिला।
- सोशल मीडिया पर तस्वीरें वायरल होने लगीं।
- टीवी चैनलों पर रामलला की चर्चा होने लगी।
- लोग अरुण योगीराज से मिलने आने लगे।
यह देखकर अरुण योगीराज को भी ख़ुशी हुई कि उनकी मेहनत रंग लाई है और लोगों को पसंद आ रही है।
FAQs:
FAQ 1: रामलला की प्रतिमा बनाने में कितना समय लगा?
उत्तर: अरुण योगीराज ने रामलला की प्रतिमा बनाने में लगभग 7 महीने का समय लिया।
FAQ 2: प्रतिमा किस प्रकार की है?
उत्तर: यह एक 4.24 फीट ऊंची और 3 फीट चौड़ी प्रतिमा है, जो शुद्ध श्वेत सिंगौर की काली मर्मर पत्थर से बनाई गई है।
FAQ 3: प्रतिमा में रामलला किस रूप में दिखाए गए हैं?
उत्तर: प्रतिमा में रामलला को बाल रूप में दर्शाया गया है। वे स्नेहपूर्ण मुस्कान के साथ खड़े हैं।
FAQ 4: प्रतिमा कहाँ स्थापित की गई है?
उत्तर: रामलला की यह प्रतिमा अयोध्या में निर्माणाधीन भगवान राम के मंदिर में स्थापित की गई है।
FAQ 5: क्या अरुण योगीराज भविष्य में भी रामलला की प्रतिमाएँ बनाएँगे?
उत्तर: नहीं, अरुण योगीराज ने स्पष्ट किया है कि वे रामलला की इस प्रतिमा की और कोई प्रतिकृति नहीं बनाएँगे।
FAQ 6: अरुण योगीराज किस कलाकार परिवार से संबंध रखते हैं?
उत्तर: अरुण योगीराज एक 300 साल पुराने कलाकार परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जिन्होंने कई पीढ़ियों से मंदिरों के लिए मूर्तियाँ व प्रतिमाएँ बनाई हैं।
FAQ 7: प्रतिमा बनाते समय अरुण योगीराज के साथ कौन-कौन सी अद्भुत घटनाएँ हुईं?
उत्तर: प्रतिमा निर्माण के दौरान अरुण योगीराज के साथ बंदरों द्वारा प्रतिमा देखने आना, हनुमान जी की मूर्ति द्वारा रात में आवाज़ करके जगाना जैसी कई चमत्कारिक घटनाएँ हुईं।
निष्कर्ष:
अरुण योगीराज की कहानी से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने दिखाया कि जब हम पूरे मनोयोग से किसी काम में लग जाते हैं तो भगवान हमें सही मार्गदर्शन देते हैं। उनकी अद्भुत राम लला कि प्रतिमा ने पुरे देश को मोहित कर लिया है और लोग भाव – विभोर हो गए है।
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